मज्झिम निकाय
42. वेरंजक-सुत्तन्त
एक समय भगवान् श्रावस्ती में अनाथपिंडिक के आराम जेतवन में विहार करते थे।
उस समय वेरंजा-निवासी ब्राह्मण-गृहस्थ किसी काम से श्रावस्ती में रहते थे।
वेरंजा-निवासी ब्राह्मण-गृहस्थों ने सुना—‘शाक्यकुल से प्रब्रजित ॰ एक ओर बैठे वेरंजा-निवासी ब्राह्मण-गृहस्थों ने भगवान् से यह कहा—
“भो गौतम! क्या हेतु है, क्या प्रत्यय है, जो कोई प्राणी काया छोड मरने के बाद अपाय, दुर्गति, पतन, नर्क में उत्पन्न होते है? ॰ आज से आप गौतम हमें अंजलिबद्ध शरणागत उपासक समझें।